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कविता

एक शून्य

राहुल शर्मा


एक शून्य तैरता नजर आता है
शोरोगुल के बीच
धमनियों में रक्त के साथ
मस्तिष्क में विचारों के साथ
तैर रहा है शून्य
एक अंतहीन शोरोगुल के बीच
कभी यह शून्य रुक जाता है धमनियों के बीच
मानसिक संरचना की बुनावट के बीच
उठने लगता है दर्द
फटने लगता है मस्तिष्क
दर्द की टीस भगाती रहती है
हँफाती रहती है
प्रयोगशाला में फैली जहरीली
गैस की तरह।


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